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स्तोम॑स्य नो विभावरि॒ रात्रि॒ राजे॑व जोषसे। असा॑म॒ सर्व॑वीरा॒ भवा॑म॒ सर्व॑वेदसो व्यु॒च्छन्ती॒रनू॒षसः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्तोमस्य। नः। विभावरि। रात्रि। राजाऽइव। जोषसे। असाम। सर्वऽवीराः। भवाम। सर्वऽवेदसः। विऽउच्छन्तीः। अनु। उषसः ॥४९.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:49» पर्यायः:0» मन्त्र:6


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (विभावरि) हे चमकवाली (रात्रि) रात्रि ! (नः) हमारे (स्तोमस्य) स्तोत्र का (राजा इव) राजा के समान (जोषसे) तू सेवन करती रहे। (व्युच्छन्तीः) विविध प्रकार चमकती हुई (उषसः अनु) उषाओं के साथ-साथ हम (सर्ववीराः) सब वीरोंवाले (असाम) होवें, और (सर्ववेदसः) सब सम्पत्तिवाले (भवाम) होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य ताराओंवाली रात्रि के सुन्दर उपयोग से स्तुतियोग्य कर्म करके सदा बड़े-बड़े वीर पुरुषोंवाले और बड़ी सम्पत्तिवाले होवें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (नः) अस्माकम् (विभावरि) हे विशेषदीप्तियुक्ते (रात्रि) (राजा) (इव) यथा (जोषसे) लेटि अडागमः। सेवस्व (असाम) (सर्ववीराः) सर्ववीरोपेताः (भवाम) (सर्ववेदसः) बहुसम्पत्तियुक्ताः (व्युच्छन्तीः) विशेषेण भासमानाः (अनु) अनुलक्ष्य (उषसः) प्रभातवेलाः ॥