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वर्ये॒ वन्दे॒ सुभ॑गे॒ सुजा॑त॒ आज॑ग॒न्रात्रि॑ सु॒मना॑ इ॒ह स्या॑म्। अ॒स्मांस्त्रा॑यस्व॒ नर्या॑णि जा॒ता अथो॒ यानि॒ गव्या॑नि पु॒ष्ठ्या ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वर्ये। वन्दे। सुऽभगे। सुऽजाते। आ। अजगन्। रात्रि। सुऽमनाः। इह। स्याम्। अस्मान्। त्रायस्व। नर्याणि। जाता। अथो इति। यानि। गव्यानि। पुष्ट्या ॥४९.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:49» पर्यायः:0» मन्त्र:3


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (वर्ये) हे चाहने योग्य ! (वन्दे) हे वन्दनायोग्य ! (सुभगे) हे बड़े ऐश्वर्यवाली ! (सुजाते) हे सुन्दर जन्मवाली ! (रात्रि) रात्रि (आ अजगन्) तू आयी है, मैं (इह) यहाँ (सुमनाः) प्रसन्नचित्त (स्याम्) रहूँ। (अस्मान्) हमारे लिये (नर्याणि) मनुष्यों की हितकारी (जाता) उत्पन्न वस्तुओं को (अथो) और भी [उनको], (यानि) जो (गव्यानि) गौ [आदि] की हितकारी वस्तु हैं, (पुष्ट्या) वृद्धि के साथ (त्रायस्व) रक्षा कर ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य रात्रि रूप कठिनाई में प्रसन्नचित्त रहकर अपना कर्तव्य करते रहें, वे उन्नति करके अपनी सम्पत्ति की रक्षा कर सकें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(वर्ये) हे वरणीये (वन्दे) वदि अभिवादनस्तुत्योः-घञ्। हे वन्दनीये (सुभगे) बह्वैश्वर्यवति (सुजाते) हे सुजन्मयुक्ते (आ अजगन्) गमेर्लङि मध्यमपुरुषे सिपि शपः श्लुः। मो नो धातोः। पा० ८।२।६४। इति नत्वम्। हल्ङ्याभ्यो दीर्घा०। पा० ६।१।६८। इति सिपो लोपः। आगच्छः। आगतासि (रात्रि) (सुमनाः) प्रसन्नचित्तः (इह) अत्र (स्याम्) अहं भवेयम् (अस्मान्) चतुर्थ्यर्थे द्वितीया। अस्मभ्यम् (त्रायस्व) पालय (नर्याणि) नरहितानि (जाता) उत्पन्नानि वस्तूनि (अथो) अपि च (यानि) वस्तूनि (गव्यानि) गवादिभ्यो हितानि (पुष्ट्या) वृद्ध्या ॥