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इ॑षि॒रा योषा॑ युव॒तिर्दमू॑ना॒ रात्री॑ दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्भग॑स्य। अ॑श्वक्ष॒भा सु॒हवा॒ संभृ॑तश्री॒रा प॑प्रौ॒ द्यावा॑पृथि॒वी म॑हि॒त्वा ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इषिरा। योषा। युवतिः। दमूना। रात्री। देवस्य। सवितुः। भगस्य। अश्वऽक्षभा। सुऽहवा। सम्ऽभृतश्रीः। आ। पप्रौ। द्यावापृथिवी इति। महिऽत्वा ॥४९.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:49» पर्यायः:0» मन्त्र:1


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इषिरा) फुरतीली, (योषा) सेवनीया (युवतिः) युवा [बलवती], (देवस्य) प्रकाशमान, (भगस्य) ऐश्वर्यवान् (सवितुः) प्रेरक सूर्य की (दमूनाः) वश में करनेवाली, (अश्वक्षमा) शीघ्र फैलनेवाली, (सुहवा) सहज में बुलाने योग्य, (संभृतश्रीः) सम्पूर्ण सम्पत्तिवाली (रात्रौ) रात्री ने (महित्वा) महिमा से (द्यावापृथिवी) आकाश और पृथिवी को (आ) सर्वथा (पप्रौ) भर दिया है ॥१॥
भावार्थभाषाः - जिस समय विश्रामदात्री रात्री का बड़ा अन्धकार संसार में फैले, मनुष्य सावधानी से अपनी सम्पत्ति की रक्षा करें ॥१॥
टिप्पणी: मन्त्र के पदपाठ के (अश्व-क्षमा) को (अशु-अक्षमा) मानकर अर्थ किया गया है ॥ १−(इषिरा) इषिमदिमुदि०। उ० १।५१। इष गतौ-किरच्। शीघ्रगतिः (योषा) युष सेवने-अच्, टाप्। सेवनीया (युवतिः) तरुणी। बलवती (दमूनाः) अ० ७।१४।४। दमेरुनसि। उ० ४।२™३५। दमु उपशमे-उनसि, वा दीर्घः। दमनशीला (रात्री) (देवस्य) प्रकाशमानस्य (सवितुः) प्रेरकस्य सूर्यस्य (भगस्य) ऐश्वर्यवतः (अश्वक्षमा) भृमृशीङ्०। उ० १।७। अशू व्याप्तौ-उ प्रत्ययः+कॄशृशलिकलि०। उ० ३।१२२। अक्षू व्याप्तौ-अमच्, टाप्। अशु आशु शीघ्रं अक्षमा व्यापनशीला (सुहवा) सुखेन ह्वातव्या (संभृतश्रीः) सम्पूर्णसम्पत्तिः (आ) समन्तात् (पप्रौ) प्रा पूरणे-लिट्। पूरितवती (द्यावापृथिवी) आकाशभूमी (महित्वा) महिम्ना ॥