वांछित मन्त्र चुनें

सा प॒श्चात्पा॑हि॒ सा पु॒रः सोत्त॒राद॑ध॒रादु॒त। गो॑पा॒य नो॑ विभावरि स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा। पश्चात्। पाहि। सा। पुरः। सा। उत्तरात्। अधरात्। उत। गोपाय। नः। विभावरि। स्तोतारः। ते। इह। स्मसि ॥४८.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:48» पर्यायः:0» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे रात्रि !] (सा) सो तू (पश्चात्) पीछे से, (सा) सो तू (पुरः) सामने से, (सा) सो तू (उत्तरात्) ऊपर से (उत) और (अधरात्) नीचे से (पाहि) बचा। (विभावरि) हे चमकवाली ! (नः) हमारी (गोपाय) रक्षा कर, हम लोग (इह) यहाँ पर (ते) तेरी (स्तोतारः) स्तुति करनेवाले (स्मसि) हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को रात्रि में सावधानी के साथ सब ओर से रक्षा का प्रबन्ध रखना चाहिये ॥४॥
टिप्पणी: ४−(सा) पूर्वोक्तलक्षणा त्वम् (पश्चात्) (पाहि) रक्ष (सा) सा त्वम् (पुरः) पुरस्तात् (सा) (उत्तरात्) उपरिदेशात् (अधरात्) अधोदेशात् (उत) अपि च (गोपाय) रक्ष (नः) अस्मान् (विभावरि) म० २। हे दीप्तिमति (स्तोतारः) स्तावकाः (ते) तव (इह) अत्र (स्मसि) स्मः। भवामः ॥