बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (रात्रि) हे रात्रि ! (त्वयि) तुझमें (वसामसि) हम निवास करते हैं, (स्वपिष्यामसि) हम सोवेंगे, (जागृहि) तू जागती रह। (नः) हमारी (गोभ्यः) गौओं को, (अश्वेभ्यः) घोड़ों को और (पुरुषेभ्यः) पुरुषों को (शर्म) सुख (यच्छ) दे ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परिश्रम करके रात्रि में प्रबन्ध के साथ सोवें, जिससे सब गौ, घोड़े, मनुष्य आदि सुख से रहें ॥९॥
टिप्पणी: ९−(त्वयि) (रात्रि) (वसामसि) वसामः। निवसामः (स्वपिष्यामसि) छान्दस इडागमः। स्वप्स्यामः। निद्रां करिष्यामः (जागृहि) जागरिता भवः (गोभ्यः) धेनुभ्यः (अश्वेभ्यः) तुरङ्गेभ्यः (शर्म) सुखम् (यच्छ) देहि ॥