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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (रक्ष) तू रक्षा कर, (अघशंसः) बुराई चीतनेवाला, (माकिः) न कभी (नः) हमारा (ईशत) राजा होवे, और (मा) न (दुःशंसः) अनहित सोचनेवाला (नः) हमारा (ईशत) राजा होवे। (मा) न (स्तेनः) चोर (अद्य) आज (नः) हमारी (गवाम्) गौओं का, और (मा) न (वृकः) भेड़िया (अवीनाम्) भेड़ों का (ईशत) राजा होवे ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य ऐसा प्रबन्ध करें कि चोर-डकैत आदि दुष्ट लोग और भेड़िया-सर्प आदि हिंसक जीव प्राणियों और सम्पत्ति को हानि न पहुँचावें ॥६, ७॥
टिप्पणी: मन्त्र ६ का प्रथम पाद ऋग्वेद में है-६।७१।३ तथा ६।७५।१० और यजुर्वेद ३३।६९ ॥ ६−(रक्ष) पालय (माकिः) न कदापि (नः) अस्माकम् (अघशंसः) पापवक्ता (ईशत) ईश्वरो भवेत् (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (दुःशंसः) दुष्टहिंसकः (ईशत) (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (गवाम्) धेनूनाम् (स्तेनः) चोरः (मा) निषेधे (अवीनाम्) अजानाम् (वृकः) अरण्यश्वा (ईशत) समर्थो भवेत् ॥