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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (दुःष्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्न (अस्मासु) हममें (यत्) जो (गोषु) गौओं में (च) और (यत्) जो (नः) हमारे (गृहे) घर में है। (च) और (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाले का (अनामगः) अनामय [स्वास्थ्य] है, (तम्) उसको [भी] (प्रियः) [हमारा] प्रिय (प्रति) प्रतिकूल (मुञ्चताम्) छोड़े ॥२॥
भावार्थभाषाः - यदि दुष्ट लोग धर्मात्माओं के साथ पीड़ाजनक व्यवहार करें, तो उनको उसका यथोचित दण्ड दिया जावे ॥२॥
टिप्पणी: २−(यत्) (अस्मासु) धर्मात्मसु (दुःष्वप्न्यम्) निद्रावैकल्यम् (यत्) (गोषु) धेनुषु (यत्) (च) (नः) अस्माकम् (गृहे) निवासे (अनामगः) नञ्+आम+गमेः-ड प्रत्ययः। आमो रोगः। अनामं नैरोग्यं गच्छति प्राप्नोति यस्मात् सः। अनामयः। स्वास्थ्यम् (तम्) अनामयम् (च) (दुर्हार्दः) दुष्टहृदयस्य (प्रियः) अस्माकं हितकरः (प्रति) प्रतिकूलम् (मुञ्चताम्) मोचयतु ॥