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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ब्रह्म की उपासना का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] तू (सिन्धोः) समुद्र का (गर्भः) गर्भ [उदरसमान आधार] और (विद्युताम्) प्रकाशवालों का (पुष्पम्) विकाश [फैलाव रूप] (असि) है। (वातः) पवन (प्राणः) [तेरा] प्राण [श्वास], (सूर्यः) सूर्य (चक्षुः) [तेरा] नेत्र है, और (दिवः) आकाश (पयः) [तेरा] अन्न है ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विराट्-रूप परमात्मा को सर्वनियन्ता जानकर सदा पुरुषार्थ करें ॥५॥
टिप्पणी: ५−(सिन्धोः) समुद्रस्य (गर्भः) उदारसमान आधारः (असि) (विद्युताम्) विविधदीप्यमानानाम् (पुष्पम्) पुष्प विकसने-अच्। विकाशरूपः (वातः) वायुः (प्राणः) तव श्वासरूपः (सूर्यः) आदित्यः (चक्षुः) नेत्ररूपः (दिवः) दिवु-क। आकाशः (पयः) तवान्नम् ॥