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प्राण॑ प्रा॒णं त्रा॑यस्वासो॒ अस॑वे मृड। निरृ॑ते॒ निरृ॑त्या नः॒ पाशे॑भ्यो मुञ्च ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्राण। प्राणम्। त्रायस्व। असो इति। असवे। मृड। निःऽऋते। निःऽऋत्याः। नः। पाशेभ्यः। मुञ्च ॥४४.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:44» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] [मेरे] (प्राणम्) प्राण [जीवन] को (त्रायस्व) बचा, (असो) हे बुद्धिरूप ! (असवे) [मेरी] बुद्धि के लिये (मृज) प्रसन्न हो। (निर्ऋते) हे नित्यव्यापक ! (निर्ऋत्याः) महाविपत्ति के (पाशेभ्यः) फन्दों से (नः) हमें (मुञ्च) छुड़ा ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा की आज्ञा में प्रवृत्त रहकर अपनी बुद्धि बढ़ाते हैं, वे क्लेशों में नहीं पड़ते ॥४॥
टिप्पणी: ४−(प्राण) हे जीवनप्रद परमेश्वर (प्राणम्) मम जीवनम् (त्रायस्व) पालय (असो) असुरिति प्रज्ञानाम-निरु०१०।३४। हे प्रज्ञारूप (असवे) प्रज्ञायै (निर्ऋते) निः+ऋ गतौ-क्तिन्। हे नित्यव्यापक (निर्ऋत्याः) अ०२।१०।१। निः+ऋ हिंसायाम्-क्तिन्। महाविपत्तेः (नः) अस्मान् (पाशेभ्यः) बन्धनेभ्यः (मुञ्च) मोचय ॥