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आयु॑षोऽसि प्र॒तर॑णं॒ विप्रं॑ भेष॒जमु॑च्यसे। तदा॑ञ्जन॒ त्वं श॑न्ताते॒ शमापो॒ अभ॑यं कृतम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आयुषः। असि। प्रऽतरणम्। विप्रम्। भेषजम्। उच्यसे। तत्। आऽअञ्जन। त्वम्। शम्ऽताते। शम्। आपः। अभयम्। कृतम् ॥४४.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:44» पर्यायः:0» मन्त्र:1


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे ब्रह्म !] तू (आयुषः) जीवन का (प्रतरणम्) बढ़ानेवाला (असि) है, तू (विप्रम्) परिपूर्ण (भेषजम्) औषध (उच्यसे) कहा जाता है। (तत्) सो, (शन्ताते) हे शान्तिकारक ! (आञ्जन) आञ्जन [संसार प्रकट करनेवाले ब्रह्म], (त्वम्) तू (आपः) हे सुकर्म ! [तुम दोनों] (शम्) शान्ति और (अभयम्) अभय (कृतम्) करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो प्राणी परमात्मा के नियम पर चलकर सुकर्म करते हैं, वे सदा सुखी और निर्भय रहते हैं ॥१॥
टिप्पणी: इस सूक्त का मिलान करो-अ०४।९॥ आञ्जन शब्द का अर्थ लेप औषध भी है ॥१−(आयुषः) जीवनस्य (असि) (प्रतरणम्) प्रवर्धकम् (विप्रम्) वि+प्रा पूरणे-क। परिपूर्णम् (भेषजम्) औषधम् (उच्यसे) कथ्यसे (तत्) तस्मात् कारणात् (आञ्जन) अ०४।९।३। आङ्+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-ल्युट्। हे यथावत् संसारस्य व्यक्तिकारक ब्रह्म। हे प्रलेप (त्वम्) (शन्ताते) अ०४।१३।५। शिवशमरिष्टस्य करे। पा०४।४।१४३। तातिल्-प्रत्ययः करणेऽर्थे। हे शान्तिकारक (शम्) शान्तिम् (आपः) आपः कर्माख्यायां ह्रस्वो नुट् च वा। उ०४।२०८। आप्लृ व्याप्तौ-असुन्। हे सुकर्म (अभयम्) भयराहित्यम् (कृतम्) कुरुतं युवाम् ॥