देवता: मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
ऋषि: ब्रह्मा
छन्द: त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
स्वर: ब्रह्मा सूक्त
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। ब्र॒ह्मा मा॒ तत्र॑ नयतु ब्र॒ह्मा ब्रह्म॑ दधातु मे। ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
पद पाठ
यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। ब्रह्मा। मा। तत्र। नयतु। ब्रह्मा। ब्रह्म। दधातु। मे। ब्रह्मणे। स्वाहा ॥४३.८॥
अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:43» पर्यायः:0» मन्त्र:8
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी [ईश्वर वा वेद के जाननेवाले लोग] (दीक्षया) दीक्षा [नियम और व्रत की शिक्षा] और (तपसा सह) तप [वेदाध्ययन, जितेन्द्रियता] के साथ (यान्ति) पहुँचते हैं। (ब्रह्मा) ब्रह्मा [सबसे बड़ा जगत्स्रष्टा परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (ब्रह्मा) ब्रह्म। [परमात्मा] (मे) मुझको (ब्रह्म) वेदज्ञान (दधातु) देवे। (ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ब्रह्मज्ञानियों के समान दीक्षा और तप के साथ परमात्मा की प्राप्ति का उपाय करते हैं, वे ही ब्रह्मानन्द भोगते हैं ॥८॥
टिप्पणी: ८−(ब्रह्मा) सर्ववृद्धः। जगत्स्रष्टा परमेश्वरः (ब्रह्मा) (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (ब्रह्मणे) जगदुत्पादकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥