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यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॑ यान्ति दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। इन्द्रो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ बल॒मिन्द्रो॑ दधातु मे। इन्द्रा॑य॒ स्वाहा॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। इन्द्रः। मा। तत्र। नयतु। बलम्। इन्द्रः। दधातु। मे। इन्द्राय। स्वाहा ॥४३.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:43» पर्यायः:0» मन्त्र:6


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्न) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी....... [मन्त्र १]। (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (इन्द्रः) इन्द्र [परमात्मा] (मे) मुझको (बलम्) बल (दधातु) देवे। (इन्द्राय) इन्द्र [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥६॥
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥६॥
टिप्पणी: ६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (बलम्) सामर्थ्यम् (इन्द्रः) (इन्द्राय) परमैश्वरवते परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥