वांछित मन्त्र चुनें

यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। च॒न्द्रो मा॒ तत्र॑ नयतु॒ मन॑श्च॒न्द्रो द॑धातु मे। च॒न्द्राय॒ स्वाहा॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। चन्द्रः। मा। तत्र। नयतु। मनः। चन्द्रः। दधातु। मे ॥ चन्द्राय। स्वाहा ॥४३.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:43» पर्यायः:0» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी....... [मन्त्र १]। (चन्द्रः) चन्द्र [चन्द्रसमान आनन्द देनेवाला परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (चन्द्रः) चन्द्र [परमात्मा] (मे) मुझको (मनः) मननसामर्थ्य (दधातु) देवे। (चन्द्राय) चन्द्र [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥४॥
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥४॥
टिप्पणी: ४−(चन्द्रः) चन्द्र इवाह्लादकः परमात्मा (मनः) मननसामर्थ्यम् (चन्द्रः) (चन्द्राय) आह्लादकाय परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥