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यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। वा॒युर्मा॒ तत्र॑ नयतु वा॒युः प्र॒णान्द॑धातु मे। वा॒यवे॒ स्वाहा॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। वायुः। मा। तत्र। नयतु। वायुः। प्राणान्। दधातु। मे। वायवे। स्वाहा ॥४३.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:43» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी........ [मन्त्र १]। (वायुः) वायु [पवन के समान शीघ्रगामी परमात्मा] (मा) मुझको (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (वायुः) वायु [परमात्मा] (मे) मुझे (प्राणान्) प्राणों को (दधातु) देवे, (वायवे) वायु [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥२॥
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥२॥
टिप्पणी: २−(वायुः) वायुसमानशीघ्रगामी परमात्मा (वायुः) (प्राणान्) जीवनसाधनानि (दधातु) ददातु (मे) मह्यम् (वायवे) शीघ्रगामिने परमात्मने (स्वाहा) सुवाणी। अन्यत् पूर्ववत् ॥