जी॑व॒ला नाम॑ ते मा॒ता जी॑व॒न्तो नाम॑ ते पि॒ता। नद्या॒यं पुरु॑षो रिषत्। यस्मै॑ परि॒ब्रवी॑मि त्वा सा॒यंप्रा॑त॒रथो॒ दिवा॑ ॥
पद पाठ
जीवला। नाम। ते। माता। जीवन्तः। नाम। ते। पिता। नद्य। अयम्। पुरुषः। रिषत्। यस्मै। परिऽब्रवीमि। त्वा। सायम्ऽप्रातः। अथो इति। दिवा ॥३९.३॥
अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:39» पर्यायः:0» मन्त्र:3
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे कुष्ठ !] (जीवला) जीवला [जीवन देनेवाली] (नाम) नाम (ते) तेरी (माता) माता [बनानेवाली पृथिवी] है, (जीवन्तः) जीवन्त [जिलानेवाला] (नाम) नाम (ते) तेरा (पिता) पिता [पालनेवाला सूर्य वा मेघ] है। (नद्य) हे नद्य ! [नदी में उत्पन्न कुष्ठ] (अयम्) वह....... [मन्त्र २] ॥३॥
भावार्थभाषाः - कुष्ठ औषध पृथिवी और सूर्य वा मेघ के सम्बन्ध से उत्पन्न होकर अनेक कठिन रोगों का नाश करता है ॥३॥
टिप्पणी: इस मन्त्र का मिलान करो-अ०१।२४।३। तथा ८।२।६॥३−(जीवला) अ०८।२।६। जीव+ला दाने-क, टाप्। जीवनप्रदा (नाम) (ते) तव (माता) निर्मात्री पृथिवी (जीवन्तः) तॄभूवहिवसि०। उ०३।१२८। जीव प्राणधारणे-झच्। जीवयिता (नाम) (ते) तव (पिता) पालकः सूर्यो मेघो वा। अन्यत् पूर्ववत् ॥