वांछित मन्त्र चुनें

उ॒भयो॑रग्रभं॒ नामा॒स्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उभयोः। अग्रभम्। नाम। अस्मै। अरिष्टऽतातये ॥३८.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:38» पर्यायः:0» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रोग नाश करने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (उभयोः) दोनों के (नाम) नाम को (अस्मै) इस [पुरुष] के लिये (अरिष्टतातये) कुशल करने को (अग्रभम्) मैंने लिया है ॥३॥
भावार्थभाषाः - गुग्गुल नदी वा समुद्र के पास के वृक्ष विशेष का निर्यास अर्थात् गोंद होता है, उसको अग्नि पर जलाने से सुगन्ध उठता है, जिससे अनेक रोग नष्ट होते हैं ॥२, ३॥
टिप्पणी: ३−(उभयोः) द्वयोः (अग्रभम्) अग्रहीषम् (नाम) संज्ञाम् (अस्मै) पुरुषाय (अरिष्टतातये) अ०३।५।५। शिवशमरिष्टस्य करे पा०४।४।१४३। इति अरिष्ट-तातिल् करोत्यर्थे। क्षेमकरणाय ॥