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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रोगों के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यशृङ्गः) सोने के समान सींग [अगले भाग] वाला, (ऋषभः) ऋषभ [औषध विशेष के समान] (अयम्) इस (मणिः) प्रशंसनीय (शातवारः) शतवार ने (सर्वान्) सब (दुर्णाम्नः) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर आदि] को (तृड्ढ्वा) मार कर (रक्षांसि) राक्षसों [रोगजन्तुओं] को (अव अक्रमीत्) खूँद डाला है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे ऋषभ औषध बहुत बलकारी और अनेक रोगनाशक है, वैसे ही यह शतवार औषध है ॥५॥
टिप्पणी: ५−(हिरण्यशृङ्गः) सुवर्णसमानशृङ्गमग्रभागो यस्य सः (ऋषभः) ऋषभौषधितुल्यः (पुष्टिकरः) (शातवारः) स्वार्थे-अण्। शतवारः-म०१। (अयम्) (मणिः) प्रशस्तः (दुर्णाम्नः) अर्शआदिरोगान् (सर्वान्) (तृड्ढ्वा) तृह हिंसायाम्-क्त्वा। हिंसित्वा (रक्षांसि) राक्षसान्। रोगजन्तून् (अव अक्रमीत्) पादेन यथा विक्षिप्तवान् ॥