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श॒तं वी॒रान॑जनयच्छ॒तं यक्ष्मा॒नपा॑वपत्। दु॒र्णाम्नः॒ सर्वा॑न्ह॒त्वाव॒ रक्षां॑सि धूनुते ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शतम्। वीरान्। अजनयत्। शतम्। यक्ष्मान्। अप। अवपत्। दुःऽनाम्नः। सर्वान्। हत्वा। अव। रक्षांसि। धूनुते ॥३६.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:36» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रोगों के नाश का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - उस [शतवार] ने (शतम्) सौ [अनेक] (वीरान्) वीर (अजनयत्) उत्पन्न किये हैं, (शतम्) सौ [अनेक] (यक्ष्मान्) राजरोग (अप अवपत्) इतर-वितर किये हैं। वह (सर्वान्) सब (दुर्णाम्नः) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर आदि] को (हत्वा) मारकर (रक्षांसि) राक्षसों [रोगजन्तुओं] को (अव धूनुते) हिला डालता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - शतवार महौषध के सेवन से वीर्य पुष्ट होकर सब वीर सन्तान उत्पन्न होते हैं, और सब दुष्ट रोग नष्ट होते हैं ॥४॥
टिप्पणी: ४−(शतम्) अनेकान् (वीरान्) शूरान् (अजनयत्) उदपादयत् विश्ववारः-अ०५ (यक्ष्मान्) राजरोगान् (अपावपत्) सर्वथा विक्षिप्तवान् (दुर्णाम्नः) अर्शआदिरोगान् (सर्वान्) (हत्वा) नाशयित्वा (रक्षांसि) रोगजन्तून् (अव धूनुते) सर्वथा कम्पयति ॥