वांछित मन्त्र चुनें

ये यक्ष्मा॑सो अर्भ॒का म॒हान्तो॒ ये च॑ श॒ब्दिनः॑। सर्वा॑न् दुर्णाम॒हा म॒णिः श॒तवा॑रो अनीनशत् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। यक्ष्मासः। अर्भकाः। महान्तः। ये। च। शब्दिनः। सर्वान्। दुर्नामऽहा। मणिः। शतऽवारः। अनीनशत् ॥३६.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:36» पर्यायः:0» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रोगों के नाश का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (यक्ष्मासः) राजरोग (अर्भकाः) छोटे और [जो] (महान्तः) बड़े हैं, (च) और (ये) जो (शब्दिनः) महाशब्दकार हैं। (सर्वान्) उन सबको (दुर्णामहा) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर दाद आदि] के मिटाने हारे, (मणिः) प्रशंसनीय (शतवारः) शतवार [मन्त्र १] ने (अनीनशत्) नष्ट कर दिया है ॥३॥
भावार्थभाषाः - छोटे-बड़े राजरोग आदि और वे रोग जिनसे शरीर में खुजली वा चरचराहट शब्द होता है, शतावर औषध से सब नष्ट हो जाते हैं ॥३॥
टिप्पणी: ३−(ये) (यक्ष्मासः) यक्ष्माः। राजरोगाः (अर्भकाः) क्षुद्राः (महान्तः) वृद्धिं गताः (ये) (च) (शब्दिनः) महाशब्दकारकाः (सर्वान्) (दुर्णामहा) दुर्णाम्नामर्शआदिरोगाणां हन्ता (मणिः) प्रशस्तः (शतवारः) म०१। (अनीनशत्) नाशितवान् ॥