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परि॑ मा दि॒वः परि॑ मा पृथि॒व्याः पर्य॒न्तरि॑क्षा॒त्परि॑ मा वी॒रुद्भ्यः॑। परि॑ मा भू॒तात्परि॑ मो॒त भव्या॑द्दि॒शोदि॑शो जङ्गि॒डः पा॑त्व॒स्मान् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि। मा। दिवः। परि। मा। पृथिव्याः। परि । अन्तरिक्षात्। परि। मा। वीरुत्ऽभ्यः। परि। मा। भूतात्। परि। मा। उत। भव्यात्। दिशःऽदिशः। जङ्गिडः। पातु। अस्मान् ॥३५.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:35» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सबकी रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) मुझे (दिवः) सूर्य से (परि) सर्वथा, (मा) मुझे (पृथिव्याः) पृथिवी से (परि) सर्वथा, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (परि) सर्वथा, (मा) मुझे (वीरुद्भ्यः) ओषधियों से (परि) सर्वथा। (मा) मुझे (भूतात्) वर्तमान से (परि) सर्वथा, (उत) और (मा) मुझे (भव्यात्) भविष्यत् से (परि) सर्वथा और (दिशोदिशः) प्रत्येक दिशा से (अस्मान्) हम सबको (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला औषध] (पातु) पाले ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सब स्थानों और सब कालों के अनुकूल जङ्गिड औषध के सेवन से अपनी और अपने हितकारियों की रक्षा करे ॥४॥
टिप्पणी: ४−(परि) सर्वतः (मा) माम् (दिवः) सूर्यात् (परि) (मा) (पृथिव्याः) भूमिलोकात् (परि) (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (परि) (मा) (वीरुद्भ्यः) विरोहणशीलाभ्य ओषधिभ्यः (परि) (मा) (भूतात्) भवन्ति भूतानि यस्मिंस्तस्मात्। वर्तमानात् (परि) (मा) (उत) अपि च (भव्यात्) भविष्यतः (दिशोदिशः) सर्वदिक्सकाशात् (जङ्गिडः) (पातु) रक्षतु (अस्मान्) ॥