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स नो॑ रक्षतु जङ्गि॒डो ध॑नपा॒लो धने॑व। दे॒वा यं च॒क्रुर्ब्रा॑ह्म॒णाः प॑रि॒पाण॑मराति॒हम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः। रक्षतु। जङ्गिडः। धनऽपालः। धनाऽइव। देवाः। यम्। चक्रुः। ब्राह्मणाः। परिऽपानम्। अरातिऽहम् ॥३५.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:35» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सबकी रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला औषध] (नः) हमारी (रक्षतु) रक्षा करे, (एव) जैसे (धनपालः) धनरक्षक (धना) धनों की। (यम्) जिस [औषध] को (देवाः) कामनायोग्य (ब्राह्मणाः) वेदज्ञानियों ने (अरातिहम्) शत्रुनाशक (परिपाणम्) महारक्षक (चक्रुः) किया है ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के परीक्षित औषध जङ्गिड का सेवन करके रोगों से अपनी रक्षा करें, जैसे कोशाध्यक्ष हानि से कोश की रक्षा करता है ॥२॥
टिप्पणी: २−(सः) तादृशः (नः) अस्मान् (रक्षतु) पालयतु (जङ्गिडः) औषधविशेषः (धनपालः) धनरक्षकः। कोशाध्यक्षः (धना) धनानि (इव) यथा (देवाः) कमनीयाः (यम्) जङ्गिडम् (चक्रुः) कृतवन्तः (ब्राह्मणाः) वेदज्ञानिनः (परिपाणम्) सर्वतो रक्षकम् (अरातिहम्) शत्रुहन्तारम् ॥