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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सबकी रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (जङ्गिडस्य) जङ्गिड [संचार करनेवाले औषध] की (सः) वह (महिमा) महिमा (नः) हमें (विश्वतः) सब ओर से (परिपातु) पालती रहे। (येन) जिस [महिमा] से (ओजः) पराक्रमरूप उस [जङ्गिड] ने (ओजसा) बलपूर्वक (विष्कन्धम्) विष्कन्ध [विशेष सुखानेवाले वात रोग] को और (संस्कन्धम्) संस्कन्ध [सब शरीर में व्यापनेवाले महावात रोग] को (सासह) दबाया है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जङ्गिड औषध के उपयोग से सब प्रकार के वात रोग मिटते हैं ॥५॥
टिप्पणी: ५−(सः) पूर्वोक्तः (जङ्गिडस्य) संचारकमहौषधस्य (महिमा) महत्वम् (नः) अस्मान् (परिपातु) पालयतु (विश्वतः) सर्वतः (विष्कन्धम्) वि+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः-घञ्, दस्य धः। विशेषेण शोषकं वातरोगम् (येन) महिम्ना (सासह) अभिबभूव (संस्कन्धम्) समस्तशरीरव्यापकं वातरोगम् (ओजः) पराक्रमरूपो जङ्गिडः (ओजसा) प्रभावेण ॥