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स ज॑ङ्गि॒डस्य॑ महि॒मा परि॑ णः पातु वि॒श्वतः॑। विष्क॑न्धं॒ येन॑ सा॒सह॒ संस्क॑न्ध॒मोज॒ ओज॑सा ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। जङ्गिडस्य। महिमा। परि। नः। पातु। विश्वतः। विऽस्कन्धम्। येन। ससह। सम्ऽस्कन्धम्। ओजः। ओजसा ॥३४.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:34» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सबकी रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (जङ्गिडस्य) जङ्गिड [संचार करनेवाले औषध] की (सः) वह (महिमा) महिमा (नः) हमें (विश्वतः) सब ओर से (परिपातु) पालती रहे। (येन) जिस [महिमा] से (ओजः) पराक्रमरूप उस [जङ्गिड] ने (ओजसा) बलपूर्वक (विष्कन्धम्) विष्कन्ध [विशेष सुखानेवाले वात रोग] को और (संस्कन्धम्) संस्कन्ध [सब शरीर में व्यापनेवाले महावात रोग] को (सासह) दबाया है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जङ्गिड औषध के उपयोग से सब प्रकार के वात रोग मिटते हैं ॥५॥
टिप्पणी: ५−(सः) पूर्वोक्तः (जङ्गिडस्य) संचारकमहौषधस्य (महिमा) महत्वम् (नः) अस्मान् (परिपातु) पालयतु (विश्वतः) सर्वतः (विष्कन्धम्) वि+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः-घञ्, दस्य धः। विशेषेण शोषकं वातरोगम् (येन) महिम्ना (सासह) अभिबभूव (संस्कन्धम्) समस्तशरीरव्यापकं वातरोगम् (ओजः) पराक्रमरूपो जङ्गिडः (ओजसा) प्रभावेण ॥