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पु॒ष्टिर॑सि पु॒ष्ट्या मा॒ सम॑ङ्ग्धि गृहमे॒धी गृ॒हप॑तिं मा कृणु। औदु॑म्बरः॒ स त्वम॒स्मासु॑ धेहि र॒यिं च॑ नः॒ सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छ रा॒यस्पोषा॑य॒ प्रति॑ मुञ्चे अ॒हं त्वाम् ॥

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पद पाठ

पुष्टिः। असि। पुष्ट्या। मा। सम्। अङ्ग्धि। गृहऽमेधी। गृहऽपतिम्। मा। कृणु। औदुम्बरः। सः। त्वम्। अस्मासु। धेहि। रयिम्। च। नः। सर्वऽवीरम्। नि। यच्छ। रायः। पोषाय। प्रति। मुञ्चे। अहम्। त्वाम् ॥३१.१३॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:31» पर्यायः:0» मन्त्र:13


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] तू (पुष्टिः) वृद्धिरूप (असि) है, (वृद्ध्या) वृद्धि के साथ (मा) मुझे (सम् अङ्ग्धि) संयुक्त कर, तू (गृहमेधी) घर के काम समझनेवाला [है], (मा) मुझे (गृहपतिम्) घर का स्वामी (कृणु) कर। (सः) सो (औदुम्बरः) संघटन चाहनेवाला (त्वम्) तू। (अस्मासु) हम लोगों के बीच (नः) हमको (सर्ववीरम्) सबको वीर रखनेवाला (रयिम्) धन (धेहि) दे, (च) और (नि यच्छ) दृढ़ कर, (अहम्) मैं (त्वाम्) तुझको (रायः) धन की (पोषाय) वृद्धि के लिये (प्रति मुञ्चे) स्वीकार करता हूँ ॥१३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा को सर्वभण्डार और सर्वशक्तिमान् समझकर मनुष्य अपनी वृद्धि के लिये प्रवृत्ति करते रहें ॥१३॥
टिप्पणी: १३−(पुष्टिः) वृद्धिरूपः (असि) (पुष्ट्या) पोषेण (मा) माम् (सम् अङ्ग्धि) अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-लोट्। सम्यग् आक्तं कुरु। संयुक्तं कुरु (गृहमेधी) अ०८।१०।३। गृह+मेधृ वधमेधासङ्गमेषु-णिनि गृहाणि गृहकार्याणि मेधति जानातीति सः (गृहपतिम्) गृहस्वामिनम् (मा) माम् (कृणु) कुरु (औदुम्बरः) म०१। संहतिस्वीकर्ता (सः) (त्वम्) (अस्मासु) (धेहि) धारय (रयिम्) धनम् (च) (नः) अस्मभ्यम् (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात् तादृशम् (नि यच्छ) नियतं कुरु (रायः) धनस्य (पोषाय) वर्धनाय (प्रति मुञ्चे) स्वीकरोमि (अहम्) (त्वाम्) परमात्मानम् ॥