बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (त्वाम्) तुझे (देववर्म) विद्वानों का कवच, (त्वाम्) तुझे (ब्रह्मणः) वेद का (पतिम्) रक्षक (आहुः) वे लोग कहते हैं। (त्वाम्) तुझे (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष] का (वर्म) कवच (आहुः) वे लोग कहते हैं, (त्वम्) तू (राष्ट्राणि) राज्यों की (रक्षसि) रक्षा करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - पराक्रमी शूर सेनापति विद्वानों, वेदों और सब राज्यों की रक्षा करे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(त्वाम्) (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (देववर्म) विदुषां कवचं रक्षासाधनम् (त्वाम्) (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिम्) पालयितारम् (त्वाम्) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (आहुः) (वर्म) (त्वम्) (राष्ट्राणि) राज्यानि (रक्षसि) पालयसि ॥