रु॒न्द्धि द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे रु॒न्द्धि मे॑ पृतनाय॒तः। रु॒न्द्धि मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ रु॒न्द्धि मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥
पद पाठ
रुन्द्धि। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। रुन्द्धि। मे। पृतनाऽयतः। रुन्द्धि। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। रुन्द्धि। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.३॥
अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:29» पर्यायः:0» मन्त्र:3
बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सेनापति के लक्षण का उपदेश ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (रुन्द्धि) रोक दे, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (रुन्द्धि) रोक दे। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवालों को (रुन्द्धि) रोक दे, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (रुन्द्धि) रोक दे॥३॥
भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥३॥
टिप्पणी: ३−(रुन्द्धि) रुधिर् आवरणे। आवृणु। निरोधं कुरु ॥