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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सेनापति के लक्षण का उपदेश ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (निक्ष) कोंच डाल, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (निक्ष) कोंच डाल। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवालों को (निक्ष) कोंच डाल, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (निक्ष) कोंच डाल ॥१॥
भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥१॥
टिप्पणी: १−(निक्ष) णिक्ष चुम्बने, अत्र पीडने। पीडय ॥