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कृ॒न्त द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे कृ॒न्त मे॑ पृतनाय॒तः। कृ॒न्त मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ कृ॒न्त मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कृन्त। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। कृन्त। मे। पृतनाऽयतः। कृन्त। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दान्‌। कृन्त। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.८॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:28» पर्यायः:0» मन्त्र:8


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (कृन्त) कतर डाल, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (कृन्त) कतर डाल। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दान्) दुष्ट हृदयवालों को (कृन्त) कतर डाल, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (कृन्त) कतर डाल ॥८•॥
भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥८॥
टिप्पणी: ८−(कृन्त) कृती छेदने मुचादित्वाद् नुम्। छिन्द्धि ॥