छि॒न्द्धि द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे छि॒न्द्धि मे॑ पृतनाय॒तः। छि॒न्द्धि मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ छि॒न्द्धि मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥
पद पाठ
छिन्द्धि। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। छिन्द्धि। मे। पृतनाऽयतः। छिन्द्धि। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दान्। छिन्द्धि। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.६॥
अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:28» पर्यायः:0» मन्त्र:6
बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (छिन्द्धि) छेद डाल, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (छिन्द्धि) छेद डाल (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दान्) दुष्ट हृदयवालों को (छिन्द्धि) छेद डाल, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (छिन्द्धि) छेद डाल ॥६॥
भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥६॥
टिप्पणी: ६−(छिन्द्धि) छिदिर् द्वैधीकरणे। द्वैधीकुरु (दुर्हार्दान्) दुष्टहृदयान्। शिष्टं समानं सर्वत्र ॥७॥