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भि॒न्द्धि द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे भि॒न्द्धि मे॑ पृतनाय॒तः। भि॒न्द्धि मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ भि॒न्द्धि मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भिन्द्धि। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। भिन्द्धि। मे। पृतनाऽयतः। भिन्द्धि। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। भिन्द्धि। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:28» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (भिन्द्धि) तोड़ दे, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ानेवालों को (भिन्द्धि) तोड़ दे, (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवालों को (भिन्द्धि) तोड़ दे, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (भिन्द्धि) तोड़ दे ॥५॥
भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥५॥
टिप्पणी: ५−(भिन्द्धि) विदारय (दर्भ) म०१। हे शत्रुविदारक सेनापते (सपत्नान्) शत्रून् (मे) मम (भिन्द्धि) (मे) मह्यम् (पृतनायतः) अ०१।२१।२। सुप आत्मनः क्यच्। पा०३।१।८। पृतना-क्यच्, आकारलोपाभावश्छान्दसः। ततः शतृ। पृतन्यतः। पृतनां सेनामात्मन इच्छतः शत्रून् (भिन्द्धि) (मे) मम (सर्वान्) (दुर्हार्दः) म०२। दुष्टहृदयान् (भिन्द्धि) (मे) मम (द्विषतः) विरोधकान् (मणे) हे प्रशंसनीय ॥