वांछित मन्त्र चुनें

विध्य॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ विध्य॑ मे पृतनाय॒तः। विध्य॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ विध्य॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विध्य। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। विध्य। मे। पृतनाऽयतः। विध्य। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। विध्य। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.१०॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:28» पर्यायः:0» मन्त्र:10


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (विध्य) वेध डाल, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (विध्य) वेध डाल। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवालों को (विध्य) वेध डाल, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (विध्य) वेध डाल ॥१०॥
भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥१०॥
टिप्पणी: १०−(विध्य) व्यध ताडने। ताडय ॥