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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे प्रजागणो !] (इमम्) इस (सोमम्) चन्द्रमा [समान शान्तिकारक पुरुष] को (महे) बड़े (आयुषे) जीवन के लिये और (श्रोत्राय) सुनवाई के लिये (परि) सब प्रकार (धत्तन) धारण करो। (यथा) जिससे (एनम्) इस [पुरुष] को (जरसे) स्तुति के लिये (नयाम्) मैं ले चलूँ, और वह (ज्योक्) बहुत काल तक (श्रोत्रे) सुनवाई में (अधि) अधिकारपूर्वक (जागरत्) जागता रहे ॥३॥
भावार्थभाषाः - प्रजागणों को उचित है कि जिस पुरुष को राजा बनावें, उससे सदा प्रीति रक्खें, जिससे वह स्तुति प्राप्त करके प्रजा के दुःखों को सदा सुने और दूर करे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(सोमम्) चन्द्रसमानशान्तिप्रदं पुरुषम् (श्रोत्राय) श्रवणकरणाय (श्रोत्रे) श्रवणकरणे। अन्यत् पूर्ववत्-म०२॥