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वि॑षास॒ह्यै स्वाहा॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विऽससह्यै। स्वाहा ॥२३.२७॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:23» पर्यायः:0» मन्त्र:27


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ब्रह्मविद्या का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (विषासह्यै) सदा विजयिनी [वेदविद्या] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२७॥
टिप्पणी: २७−(विषासह्यै) सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ। वा० पा०३।२।१७१। षह अभिभवे-कि। अलोपयलोपौ। विविधं पुनः पुनः सोढ्री तस्यै सदाविजयिन्यै वेदविद्यायै ॥