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शं नो॑ अ॒ग्निर्ज्योति॑रनीको अस्तु॒ शं नो॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒श्विना॒ शम्। शं नः॑ सु॒कृतां॑ सुकृ॒तानि॑ सन्तु॒ शं न॑ इषि॒रो अ॒भि वा॑तु॒ वातः॑ ॥

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पद पाठ

शम्। नः। अग्निः। ज्योतिःऽअनीकः। अस्तु। शम्। नः। मित्रावरुणौ। अश्विना। शम्। शम्। नः। सुऽकृताम्। सुऽकृतानि। सन्तु । शम्। नः। इषिरः। अभि। वातु। वातः ॥१०.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:10» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिरनीकः) ज्योति को सेना समान रखनेवाला (अग्निः) अग्नि (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (अस्तु) हो, (मित्रावरुणौ) दोनों दिन और राति (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हों (अश्विना) दोनों सूर्य और चन्द्रमा (शम्) शान्तिकारक हों। (सुकृताम्) सुकर्मियों के (सुकृतानि) पुण्य कर्म (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (सन्तु) हों, (इषिरः) शीघ्रगामी (वातः) पवन (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिकारक (अभि) सब ओर से (वातु) चले ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि, दिन, राति, सूर्य, चन्द्रमा और वायु आदि की गति से विद्वानों के समान उपकार लेते हैं, वे सुखी रहते हैं ॥४॥
टिप्पणी: ४−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) (अग्निः) पावकः (ज्योतिरनीकः) ज्योतिरेवानीकं सैन्यमिव यस्य सः (अस्तु) (शम्) (नः) (मित्रावरुणौ) अहोरात्रे (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (शम्) (शम्) (नः) (सुकृताम्) पुण्यकर्मणाम् (सुकृतानि) पुण्यकर्माणि (सन्तु) (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (इषिरः) वेगवान् (अभि) सर्वतः (वातु) गच्छतु (वातः) वायुः ॥