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शं नो॑ धा॒ता शमु॑ ध॒र्ता नो॑ अस्तु॒ शं न॑ उरू॒ची भ॑वतु स्व॒धाभिः॑। शं रोद॑सी बृह॒ती शं नो॒ अद्रिः॒ शं नो॑ दे॒वानां॑ सु॒हवा॑नि सन्तु ॥

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पद पाठ

शम्। नः। धाता। शम्। ऊं इति। धर्ता। नः। अस्तु। शम्। नः। उरूची। भवतु। स्वधाभिः। शम्। रोदसी इति। बृहती इति। शम्। नः। अद्रिः। शम्। नः। देवानाम्। सुऽहवानि। सन्तु ॥१०.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:10» पर्यायः:0» मन्त्र:3


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (धाता) पोषण करनेवाला [पदार्थ] (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हो, (उ) और (धर्ता) धारण करनेवाला [पदार्थ] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो, (उरूची) बहुत फैली हुई प्रकृति [जगत् सामग्री] (नः) हमें (स्वधाभिः) अपनी धारण शक्तियों से (शम्) शान्तिकारक (भवतु) हो। (बृहती) दोनों बड़े (रोदसी) सूर्य और भूमि, (शम्) शान्तिकारक हों (अद्रिः) मेघ (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हो, (देवानाम्) विद्वानों के (सुहवानि) सुन्दर बुलावे (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (सन्तु) होवें ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि वे धारण-पोषण करनेवाले पदार्थों के तत्त्व, प्रकृति के स्वभाव, सूर्य, पृथिवी, मेघ आदि के प्रभावों के ज्ञान से उपकारी होकर विद्वानों में प्रतिष्ठा पाकर सुखी होवें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(शम्) शान्तिकारकः (नः) अस्मभ्यम् (धाता) पोषकः पदार्थः (शम्) (उ) चार्थे (धर्ता) धारकः पदार्थः (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (उरूची) बह्वञ्चना। विस्तीर्णव्यापिका प्रकृतिः (भवतु) (स्वधाभिः) आत्मधारणशक्तिभिः (शम्) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (बृहती) बृहत्यौ। विशाले (शम्) (नः) (अद्रिः) मेघः (शम्) (नः) (देवानाम्) विदुषाम् (सुहवानि) सत्कारेणाह्वानानि (सन्तु) ॥