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शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुर॑न्धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑। शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥

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पद पाठ

शम्। नः। भगः। शम्। ऊं इति। नः। शंसः। अस्तु। शम्। नः। पुरम्ऽधिः। शम्। ऊं इति। सन्तु। रायः। शम्। नः। सत्यस्य। सुऽयमस्य। शंसः। शम्। नः। अर्यमा। पुरुऽजातः। अस्तु ॥१०.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:10» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारा (भगः) ऐश्वर्य (शम्) शान्तिदायक, (उ) और (नः) हमारी (शंसः) स्तुति (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो (नः) हमारी [पुरन्धिः] नगरों की धारण करनेहारी बुद्धि (शम्) शान्तिदायक हो, (उ) और (रायः) सब प्रकार के धन (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) हों। (नः) हमारा (सत्यस्य) सच्चे (सुयमस्य) सुन्दर नियम का (शंसः) कथन (शम्) शान्तिदायक हो, (पुरुजातः) बहुत प्रसिद्ध (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेहारा [न्यायकारी परमेश्वर] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करें कि उनका ऐश्वर्य, उनका कथन, उनका शासन आदि सब कार्य न्याययुक्त हो, जिससे वह जगदीश्वर सदा आनन्द देवे ॥२॥
टिप्पणी: २−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्माकम् (भगः) ऐश्वर्यम् (शम्) (उ) चार्थे (नः) (शंसः) शंसु हिंसास्तुतिकथनेषु-घञ्। स्तुतिः, कथनम् (अस्तु) (शम्) (नः) (पुरन्धिः) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। पुर्+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि प्रत्ययः, अलुक् समासः। पुरन्धिर्बहुधीः-निरु० ६।१३। पुरं गृहं नगरं शरीरं वा दधातीति। नगरस्य धारिका बुद्धिः (शम्) (उ) (सन्तु) (रायः) धनानि (शम्) (नः) (सत्यस्य) यथार्थस्य (सुयमस्य) शोभननियमस्य (शंसः) कथनम् (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता न्यायकारी परमेश्वरः (पुरुजातः) बहुप्रसिद्धः (अस्तु) ॥