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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (अत्र) यहाँ (पितरः) पितर [पालक ज्ञानी] हैं, (ये) जो (यूयम्) तुम (अत्र) यहाँ पर (पितरः)पितर (स्थ) हो, (ते) वे लोग (युष्मान् अनु) [उन] तुम्हारे अनुकूल होवें, और (यूयम्) तुम (तेषाम्) उन के बीच (श्रेष्ठाः) श्रेष्ठ (भूयास्थ) होओ ॥८६॥
भावार्थभाषाः - श्रेष्ठ ज्ञानी पितरलोग मिलकर संसार का उपकार करें, जिन के अनुग्रह से सब मनुष्य सचेत और श्रेष्ठहोवें ॥८६-८७॥
टिप्पणी: ८६−(ये) (अत्र)अस्मिन् संसारे (पितरः) पालका ज्ञानिनः (यूयम्) (स्थ) भवथ (युष्मान्) पितॄन् (ते) प्रसिद्धाः (अनु) अनुकूल्य (यूयम्) (तेषाम्) तेषां मध्ये (श्रेष्ठाः)प्रशस्यतमाः (भूयास्थ) तस्य थनादेशः। भूयास्त ॥