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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालकज्ञानियो] (वः) तुम्हारे लिये (स्वधा) अन्न हो ॥८५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥८१-८५ इन मन्त्रों का मिलान करो-यजुर्वेद २।३२ तथा महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पितृयज्ञविषय ॥
टिप्पणी: ८५−(स्वधा) अन्नम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥