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नमो॑ वः पितरो॒यच्छि॒वं तस्मै॒ नमो॑ वः पितरो॒ यत्स्यो॒नं तस्मै॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नम:। व: । पितर: । यत् । शिवम् । तस्मै । नम: । व: । पितर: । यत् । स्योनम् । तस्मै ॥४.८४॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:84


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पितरों के सन्मान का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (यत्) जो कुछ (शिवम्) मङ्गलकारी है, (तस्मै) उसे पाने के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (यत्) जो कुछ (स्योनम्) सुखदायक है, (तस्मै) उसके लाभ के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो॥८४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥
टिप्पणी: ८४−(यत्) (शिवम्)कल्याणकरम् (तस्मै) तत् प्राप्तुम् (यत्) (स्योनम्) सुखम् (तस्मै) तल्लब्धुम्।अन्यत् पूर्ववत् ॥