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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (यत्) जो कुछ (घोरम्) घोर [दारुण दुःख] है, (तस्मै) उसे हटानेके लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (यत्) जो कुछ (क्रूरम्) क्रूर [निर्दयता] है, (तस्मै) उसे दूर करने के लिये (वः)तुम को (नमः) नमस्कार हो ॥८३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥
टिप्पणी: ८३−हनहिंसागत्योः-अच्, घुरादेशः। भयानकं दारुणं दुःखम् (तस्मै) यथा म० ८१।तन्नाशयितुम् (क्रूरम्) कृतेश्छः क्रू च। उ० २।२१। कृती छेदने-रक्, क्रूइत्यादेशः। निर्दयत्वम् (तस्मै) तद्दूरीकर्तुम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥