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नमो॑ वः पितरऊ॒र्जे नमो॑ वः पितरो॒ रसा॑य ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नम: । व: । पितर: । ऊर्जे। नम:। व: । पितर: । रसाय ॥४.८१॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:81


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पितरों के सन्मान का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (ऊर्जे) पराक्रम पाने के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (रसाय) रस [ज्ञानरस, ओषधिरस, और दूध, जल, विद्या आदि रस] पाने के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो ॥८१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥
टिप्पणी: ८१−(नमः) सत्करणम् (वः) युष्मभ्यम् (पितरः) हे पित्रादिपालकज्ञानिनः (ऊर्जे) क्रियार्थोपपदस्य चकर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। तुमुनः कर्मणि चतुर्थी। ऊर्जं पराक्रमं प्राप्तुम् (रसाय) ज्ञानरसौषधिरसदुग्धजलविद्यादिरसान् प्राप्तुम्। अन्यद् गतम् ॥