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पि॒तृभ्यः॒सोम॑वद्भ्यः स्व॒धा नमः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पितृऽभ्य: । सोमवत्ऽभ्य: । स्वधा । नम: ॥४.७३॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:73


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पितरों के सन्मान का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमवद्भ्यः) बड़ेऐश्वर्यवाले (पितृभ्यः) पितरों [माता-पिता आदि पालक ज्ञानियों] को (स्वधा) अन्नऔर (नमः) नमस्कार हो ॥७३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य हैकि विविध प्रकार के विद्वान् माननीय पुरुषों का अन्न आदि से सत्कार करके विविधशिक्षा ग्रहण करें ॥७१-७४॥
टिप्पणी: ७३−(पितृभ्यः)मातापित्रादिपालकज्ञानिभ्यः (सोमवद्भ्यः) परमैश्वर्ययुक्तेभ्यः। अन्यत् पूर्ववत्॥