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अ॒ग्नये॑कव्य॒वाह॑नाय स्व॒धा नमः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्नये । क्रव्यऽवाहनाय । स्वधा । नम:॥४.७१॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:71


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पितरों के सन्मान का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (कव्यवाहनाय)बुद्धिमानों को हितकारी पदार्थों के पहुँचानेवाले (अग्नये) विद्वान् पुरुष को (स्वधा) अन्न और (नमः) नमस्कार होवे ॥७१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य हैकि विविध प्रकार के विद्वान् माननीय पुरुषों का अन्न आदि से सत्कार करके विविधशिक्षा ग्रहण करें ॥७१-७४॥मन्त्र ७१, ७२ कुछ भेद से यजुर्वेद में हैं−२।२९॥
टिप्पणी: ७१−(अग्नये) विदुषेपुरुषाय (कव्यवाहनाय) कविर्मेधाविनाम-निघ० ३।१५। कविभ्यो मेधाविभ्योहितपदार्थानां प्रापकाय (स्वधा) अन्नम् निघ० २।७ (नमः) सत्करणम् ॥