सर॑स्वतींदेव॒यन्तो॑ हवन्ते॒ सर॑स्वतीमध्व॒रे ता॒यमा॑ने। सर॑स्वतीं सु॒कृतो॑ हवन्ते॒सर॑स्वती दा॒शुषे॒ वार्यं॑ दात् ॥
पद पाठ
सरस्वतीम् । देवऽयन्त: । हवन्ते । सरस्वतीम् । अध्वरे । तायमाने । सरस्वतीम् । सुऽकृत: । हवन्ते । सरस्वती । दाशुषे । वार्यम् । दात् ॥४.४५॥
अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:45
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सरस्वती के आवाहन का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सरस्वतीम्) सरस्वती [विज्ञानवती वेदविद्या] को (सरस्वतीम्) उसी सरस्वती को (देवयन्तः) दिव्य गुणोंको चाहनेवाले पुरुष (तायमाने) विस्तृत होते हुए (अध्वरे) हिंसारहित व्यवहार में (हवन्ते) बुलाते हैं। (सरस्वतीम्) सरस्वती को (सुकृतः) सुकृती लोग (हवन्ते)बुलाते हैं। (सरस्वती) सरस्वती (दाशुषे) अपने भक्त को (वार्यम्) श्रेष्ठ पदार्थ (दात्) देती है ॥४५॥
भावार्थभाषाः - विज्ञानी लोग परिश्रमके साथ आदरपूर्वक वेदविद्या का अभ्यास करके पुण्य कर्म करते और मोक्ष आदि इष्टपदार्थ पाते हैं ॥४५॥मन्त्र ४५-४७ ऊपर आ चुके हैं-अ० १८।१।४१-४३ ॥
टिप्पणी: ४५-४७−मन्त्राव्याख्याताः-अ० १८।१।४१-४३ ॥