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यास्ते॑ धा॒नाअ॑नुकि॒रामि॑ ति॒लमि॑श्राः स्व॒धाव॑तीः। तास्ते॑ सन्तू॒द्भ्वीःप्र॒भ्वीस्तास्ते॑ य॒मो राजानु॑ मन्यताम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या: । ते । धाना: । अनुऽकिरामि । तिलऽमिश्रा:। स्वधाऽवती: । ता: । ते । सन्तु । उत्ऽभ्वी: । ता: । ते । यम: । राजा । अनु । मन्यताम् ॥४.४३॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:43


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पितरों की सेवा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे पितृगण !] (ते)तेरे लिये (याः) जिन (तिलमिश्राः) तिलों से मिली हुई, (स्वधावतीः) उत्तमअन्नवाली (धानाः) धानाओं [सुसंस्कृत पौष्टिक पदार्थों] को (अनुकिरामि) मैं [गृहस्थ] अनुकूल रीति से फैलाता हूँ। (ताः) वे [सब सामग्री] (ते) तेरे लिये (उद्भ्वीः) उदय करानेवाली और (प्रभ्वीः) प्रभुतावाली (सन्तु) होवें, और (ताः) उन [सामग्रियों] को (ते) तेरे लिये (यमः) संयमी (राजा) राजा [शासक वैद्य] (अनु)अनुकूल (मन्यताम्) जाने ॥४३॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ लोग वैद्यकप्रक्रिया के अनुसार पुष्टिकारक पदार्थों से सेवा करके पितरों को नीरोग रक्खें॥४३॥यह मन्त्र ऊपर आचुका है-मन्त्र २६ तथा कुछ भेद से-अ० १८।३।६९ ॥
टिप्पणी: ४३−(राजा)शासको वैद्यः। अन्यत् पूर्ववत्-म० २६ तथा अ० १९।३।६९ ॥