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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
गोरक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (ते)तेरे लिये (देवः) व्यवहारकुशल (सविता) प्रेरक [काम चलानेवाला, कपड़ा बनानेवालापुरुष] (एतत्) यह (वासः) कपड़ा (भर्तवे) पहिरने को (ददाति) देता है। (त्वम्) तू (यमस्य) न्यायकारी राजा के (राज्ये) राज्य में (तार्प्यम्) तृप्तिकारक (तत्) उस [वस्त्र] को (वसानः) पहिरे हुए (चर) विचर ॥३१॥
भावार्थभाषाः - न्यायी राजा के राज्यमें गाय बैल आदि के उपकार से [मन्त्र ३०] वस्त्रकार आदि लोग वस्त्र आदि बनाकरमनुष्यों का उपकार करते हैं ॥३१॥
टिप्पणी: ३१−(ते) तुभ्यम् (देवः) व्यवहारकुशलः (सविता) कर्मप्रेरकः।वस्त्रकारः। शिल्पी (वासः) वस्त्रम् (ददाति) प्रयच्छति (भर्तवे)भर्त्तुमाच्छादयितुम् (तत्) वस्त्रम् (त्वम्) हे मनुष्य (यमस्य) न्यायकारिणोराज्ञः (राज्ये) जनपदे (वसानः) आच्छादयन् (तार्प्यम्) तृप प्रीणने-ण्यत्।तृप्तिकरम् (चर) विचर ॥