वांछित मन्त्र चुनें

अक्षि॑तिं॒भूय॑सीम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अक्षितिम् । भूयसीम् ॥४.२७॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:27


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

यजमान के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [और वह उनको] (भूयसीम्) अधिकतर (अक्षितिम्) क्षयरहित क्रिया [निरन्तर जाने] ॥२७॥
भावार्थभाषाः - यज्ञ करानेवाला पुरुषयथाविधि संशोधित तिल, जौ, चावल आदि जिन सामग्रियों से हवन करता है, उसके द्वारावायुमण्डल की शुद्धि से संसार का उपकार और यजमान का अधिक पुण्य होता है ॥ २६, २७॥
टिप्पणी: २७−(अक्षितिम्)क्षयरहितां क्रियाम् (भूयसीम्) अधिकतराम् ॥