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ये नः॑ पि॒तुःपि॒तरो॒ ये पि॑ताम॒हा य आ॑विवि॒शुरु॒र्व॑न्तरि॑क्षम्। तेभ्यः॑स्व॒राडसु॑नीतिर्नो अ॒द्य व॑थाव॒शं त॒न्वः कल्पयाति ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये । न: । पितु: । पितर: । ये । पितामहा: । ये । आऽविविशु: । उरु । अन्तरिक्षम् । तेभ्य: । स्वऽराट् । असुऽनीति: । न: । अद्य । यथाऽवशम् । तन्व: । कल्पयाति ॥३.५९॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:3» पर्यायः:0» मन्त्र:59


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

घर की रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो पुरुष (नः)हमारे (पितुः) पिता के (पितरः) पिता के समान हैं, और (ये) जो [उसके] (पितामहाः)दादे के तुल्य हैं, और (ये) जो (उरु) चौड़े (अन्तरिक्षम्) आकाश में [विद्याबल सेविमान आदि द्वारा] (आविविशुः) प्रविष्ट हुए हैं, (तेभ्यः) उन [पितरों] के लिये (स्वराट्) स्वयं राजा (असुनीतिः) प्राणदाता परमेश्वर (नः) हमारे (तन्वः) शरीरोंको (अद्य) अब (यथावशम्) [हमारी] कामना के अनुकूल (कल्पयाति) समर्थ करे ॥५९॥
भावार्थभाषाः - जो पितर लोग विद्या केभण्डार परोपकारी होवें, सब मनुष्य परमेश्वर की प्रार्थना द्वारा विद्या आदि शुभगुण प्राप्त कर के उन महात्माओं के उद्देश्य पूरे करने में समर्थ होवें ॥५९॥इसमन्त्र का उत्तरार्द्ध कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१५।१४ तथा यजुर्वेद में−१९।६० और पूर्वार्द्ध ऊपर आया है-अ० १८।२।४९ ॥
टिप्पणी: ५९−पूर्वार्द्धो व्याख्यातः-अ०१८।२।४९। (तेभ्यः) पितृभ्यः (स्वराट्) स्वयमेव राजा शासकः (असुनीतिः) असूनांप्राणानां नेता प्रापकः परमेश्वरः (नः) अस्माकम् (अद्य) इदानीम् (यथावशम्)यथाकामम् (तन्वः) शरीराणि (कल्पयाति) कल्पयेत्। समर्थयेत् ॥