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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
घर की रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधयः) ओषधियाँ [अन्नसोमलता आदि] (पयस्वतीः) सारवाली [होवें], (मामकम्) मेरा (पयः) ज्ञान (पयस्वत्)सारवाला [होवे]। और (अपाम्) जलों के (पयसः) सार का (यत्) जो (पयः) सार है, (तेनसह) उसके साथ (मा) मुझे (शुम्भतु) वह [विद्वान्] शोभायमान करे ॥५६॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य विचारपूर्वक सारयुक्त ओषधियों का सेवन शुद्ध उत्तम जल के साथ करके शरीर को पुष्ट करें॥५६॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१७।१४। इस मन्त्र के पूर्वार्द्ध कामिलान करो-अ० ३।२४।१ ॥
टिप्पणी: ५६−(पयस्वतीः) रपेरत एच्च। उ० ४।१९०। पा पाने-असुन् मतुप्, ङीप् धातोरीत्वम्। सारवत्यः (ओषधयः) अन्नसोमलतादयः (पयस्वत्) सारयुक्तम् (मामकम्) मदीयम् (पयः) पय गतौ-असुन्। ज्ञानम् (अपाम्) जलानाम् (पयसः) सारस्य (यत्) (पयः) सारः (तेन) पयसा (मा) माम् (सह) (शुम्भतु) शोभनं करोतु ॥