सब दिशाओं में रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (मरुत्वान्) शूरों कास्वामी (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर (प्राच्याः) पूर्व वा सामनेवाली (दिशः) दिशा से (मा) मेरी (पातु) रक्षा करे (बाहुच्युता) भुजाओं से उत्साह दीगयी (पृथिवी) पृथिवी (इव) जैसे (द्याम् उपरि) सूर्य पर [सूर्य के आकर्षण, प्रकाशआदि के सहारे पर, प्राणियों की रक्षा करती है] (लोककृतः) समाजों के करनेवाले, (पथिकृतः) मार्गों के बनानेवाले [तुम लोगों] को (यजामहे) हम पूजते हैं (ये) जोतुम (देवानाम्) विद्वानों के बीच (हुतभागाः) भाग लेनेवाले (इह) यहाँ पर (स्थ) हो॥२५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा पूर्व आदि औरसामनेवाली आदि दिशाओं में शूरों को बल देकर रक्षा करता है, जैसे चतुर लोगों केउद्योग से पृथिवी सूर्य के आकर्षण और प्रकाश आदि द्वारा वृष्टि ताप आदि पाकरअन्न आदि उत्पन्न करके रक्षा करती है, सब मनुष्य हितैषी विद्वानों का आश्रय लेकरउस जगदीश्वर की भक्ति करें ॥२५॥