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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्यों का पितरों के साथ कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (त्वा)तुझे (मा) न तो (वृक्षः) सेवनीय संसार और (मा) न (देवी) चलनेवाली (मही) बड़ी (पृथिवी) पृथिवी (सं बाधिष्ट) कुछ बाधा देवे। (यमराजसु) यम [न्यायकारी परमात्मा]को राजा माननेवाले (पितृषु) पितरों [रक्षक महात्माओं] में (लोकम्) स्थान (वित्त्वा) पाकर (एधस्व) तू बढ़ ॥२५॥
भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी मनुष्यसंसार में विघ्नों को हटा, रत्नों की खानि पृथिवी से उपकार लेकर बड़े लोगों मेंपद पाकर बढ़ती करें ॥२५॥
टिप्पणी: २५−(मा बाधिष्ट) बाधृ विलोडने-लुङ्। मा पीडयेत् (त्वा) (वृक्षः) वृक्ष वरणे-क प्रत्ययः। सेवनीयः। संसारः (सम्) सम्यक् (मा) (देवी) दिवुगतौ-अच्। गतिमती (पृथिवी) (मही) विशाला (लोकम्) स्थानम् (पितृषु) पालकमहात्मसु (वित्त्वा) लब्ध्वा (एधस्व) वर्धस्व (यमराजसु) यमो न्यायकारी परमात्मा राजायेषां तेषु ॥